गुरुवार, 26 मार्च 2020

Introduction & Initial Screen of Microsoft Windows XP

Windows XP एक Operating System है। जिसे Microsoft Corporation ने सन् 2000 में Develop किया था। यह एक Graphic User Interface की तरह कार्य करता है।
G.U.I. होने के कारण इसमे किये जाने वाले सभी कार्य Visual होते है। जो Menu, Popups, Box तथा Windows Dialog Menu Popups, Box तथा Windows के रुप में दिखाई देता है। जिसमे इसका उपयोग आसानी से किया जा सकता है। DOS तथा UNIX की तरह इसमे लम्बी लम्बी Commands याद नही रखनी पड़ती है। Keyboard Or Mouse की सहायता से आसानी Commands चलाई जा सकती है। इस कारण यह सीखने एवं उपयोग करने में आसान है।

Features Of  Windows X.P. 

Windows XP के Features निम्न प्रकार है।-
इसके अंतर्गत किसी भी File, Folder Or Application Software को आसानी से Start Menu की सहायता से Open किया जाता है।
Character Based तथा Windows Based Application Software को आसानी से तथा सुविधापूर्ण तरीके से Open किया जा सकता है।
दो या दो से अधिक Application Software के साथ DATA को आसानी से Exchange किया जा सकता है।
Internet Connectivity आसानी से Establish की जा सकती है।
दो या दो से अधिक Computers के बीच Networking करने में सक्षम है तथा Resources उपयोग कर सकता है।

Initial Screen Of Windows XP-

जब एक Windows XP, Open करते है, तो उसकी प्रारम्भिक Screen पर निम्न Element दिखाई देते है-
Task Bar- 
Initial Screen ij Bottom, Left, Corner में एक Start Button होता है। इस Start Button की बाकी पूरी लाइन को Task Bar कहते है। Task Bar  पर System Tray, Clock, Quick, Launch, Icon तथा Start Button होता है।

Desktop
Windows के Initial Screen पर Task Bar के बाहर वाला भाग Desktop कहलाता है, इस पर Icon, Wallpaper आदि दिखाई देते है।

Wallpaper- 
Desktop पर उपस्थित Picture को Wallpaper कहते है। इसे  Background भी कहा जाता हे। इसके लिये J.P.G., T.I.F., B.M.P., T.M.L., G.I.F. आदि Files उपयोग मे लाई जाती है।

Icon- 
Desktop पर उपस्थित छोटे-छोटे Pictorial Symbol, Icon कहलाते है। जो File, Folder तथा Application Software हो सकते है, कुछ Default Icon निम्न  प्रकार है -

My Computer- 
यह एक System Folder होता है।, जिसके अंतर्गत सभी Local Hard Drives, Removable Drives, Control Penal तथा Imaging Driveदिखाई देती है। जिन्हें आसानी से Access किया जाता है।

My Document
User के द्वारा बनायी जाने वाली सभी Files, My Document में Store होती हे। अतः यहाॅ से सभी User Fileको Open, Copy, Cut, Delete, Re-name आदि किया जा सकता है।

Recycle Bin-
System से मिटाई जाने वाली सभी Files, Recycle Bin मे Store होती है। यहाॅ से उन Files को फिर से प्राप्त किया जा सकता है। यहाॅ से मिटा देने पर फिर से प्राप्त नही किया जा सकता है।

My Network Places –
इसके अंतर्गत Local Area Network, Internet Connection, Wireless Network आदि सभी Network Connections को देखा और Manage किया जा सकता है।

Internet Explorer- 
Internet Connection होने पर किसी भी Website को आसानी से Access किया जाता है।

Start Button
Windows की Initial Screen पर Button, Left Corner में Start Button होता है। इसे Access करने के लिये Keyboard से Windows Key तथा Mouse से Left Button का उपयोग किया जाता है तब एक Menu दिखाई देता हे। इसे Start Button कहते है। इसमे निम्न Option होते है।


  • Turn off
  • Log off
  • Run
  • Search
  • Help
  • Document
  • Programs

मंगलवार, 24 मार्च 2020

Networking & Internet

Networking

दो या दो से अधिक ऐसे Computer के समूह को Networking के अंतर्गत मानते है। जो आपस मे अपनी Information,  Resources का आदान प्रदान करते है, इन Computer मे मुख्य Computer को Server तथा बाकी Computer को Node, Client अथवा Terminal कहते है। Networking के द्वारा एक Computer की Information को दूसरे Computer पर भेजते है। एक Computer पर जुड़े हुयें Hardware को बाकी Computer के द्वारा Use किया जाता है तथा किसी काम को जल्दी से जल्दी करने के लिये Networking का Use करते है।
Networking चार प्रकार की होती है।
Ø Local Area Network (LAN)
Ø Campus Area Network (CAN)
Ø Metropolitan Area Network (MAN)
Ø Wide Area Network (W.A.N.)

Local Area Network- 
एक कमरे अथवा एक Building मे जुड़े हुये Computer को L.A.N. कहते है।

Campus Area Network-
10-12 Building से जुड़े Computer के अंतर्गत होने वाले Networking को C.A.N. कहते है। इसका प्रयोग सामान्यतः University, College आदि मे होते है।

Metropolitan Area Network 
इस तरह की Networking दो या दो से अधिक शहरो के लिये होती है।
T.V. Cable इसका मुख्य उदाहरण है।

Wide Area Network
दो या दो से अधिक देशों  के बीच होने वाली Networking WAN कहलाती है। आपस मे जुड़ी हुयी कई LAN का समूह जिसके द्वारा देश -विदेश की Information को शेयर किया जाता हे। Typing, Audio, Video Chatting की जा सकती है। e-mail किये जा सकते है।, Internet कहलाता है। Internet कई प्रकार के होते है। -
Ø Internet
Ø Intranet
Ø Extra-net



Languages Of Computer

कम्प्यूटर की Language को उपयोग के आधार पर बाॅटा गया है। यह तीन प्रकार के होते है।

Machine Language- 
Computer एक Electronic Device है। जो Current Signal पर कार्य करता है। Signal 0 अथवा हो सकते है। इसीलिये हम कह सकते है। कि Computer 0]1 की भाषा समझता है। 2 अंक होने के कारण इसे Binary Language कहते है Computer के द्वारा इसे Basic रुप मे समझने के कारण Low-Level Language कहते है। और अलग-अलग Computer पर अलग अलग Coding होने के कारण इसे Machine Language भी कहा जाता है।

Assembly Language- 
Binary language मे Coding करना अत्याधिक कठिन या और नये Professional इसे उपयोग करने मे कतराते थे। तब निर्देषों को कुछ Coding दी गयी, इस Coding को ही Assembly Code कहा गया। जब ये कोड एक विशाल मात्रा मे हो गये, इसमें लिखे गये निर्देशों को Assembler के द्वारा Machine Language मे बदला जाता है।

High Level language-
एक साधारण व्यक्ति जो पढ़ा लिखा होता है, उसे Assembly Language और Binary Language की तकनीक समझ मे नही आती, तब इस प्रकार लोग किसी छोटे से Program की भी Coding नही कर पाते, तब Programmers द्वारा सोचा गया कि Coding करने के लिये English language का प्रयोग किया जाये। High Level Language के द्वारा कोई भी व्यक्ति जिसे अंग्रेजी और गणित का थोड़ा भी ज्ञान हो, Software Develop कर सकता है।

कुछ High Language निम्न प्रकार है। े
Ø LOGO. (Language of Graphics Oriented)
Ø BASIC.(Beginners All Purpose Symbolic Instruction Code)
Ø COBOL (Common Business Oriented Language)
Ø ForTran. (Formula Translator)
Ø VB (Visual Basic)
Ø CPL (Combined Programming Language)
Ø BCPL (Basic Combined Programming Language)
Ø C
Ø C++
Ø C# (C-Sharp)
Ø Oracle
Ø Java (OAK)
Ø Dot Net

Classification Of Computer

Technology के आधार पर Computer को तीन भागों  में विभाजित किया जाता है।
Ø Digital computer
Ø Analog Computer
Ø Hybrid Computer


Digital Computer- 
ऐसे Computer जो अंको पर कार्य करते हैं। Digital Computer कहलाते है। 0 or 1 के आधार पर कार्य करने के कारण Binary Based Computer भी कहा जाता है। 0 से अर्थ है धारा का प्रवाहित न होना जबकि 1 दर्शाता है कि Circuit Plate मे धारा का प्रवाहित होना।

यह चार प्रकार के होते है।
1) Micro computer           2) Mini Computer

3) Mainframe computer   4) Super Computer
Micro Computer- यह मध्यम आकार के होते हैं। जो किसी एक Table पर आसानी से रखे जाते है। इनके द्वारा Millions of Instruction/Calculation प्रति सेकेण्ड  की जा सकती सकती है। इनका प्रयोग Office, House, Job, work आदि मे किया जाता है। पहला Micro Computer IBM के द्वारा बनाया गया। इसे Personal Computer भी कहा गया है।

Mini computer- Micro Computer से कुछ बड़ा आकार का Computer होता है। इसकी गति Micro Computer की अपेक्षा 5-50 गुना हो सकती है। एक Mini Computer से 30-40 Micro Computer लगाये जा सकते है। पहला Mini Computer सन् 1959 मे D.E.C. के द्वारा बनाया गया था, जिसका नाम P.O.P. था।

Mainframe Computer- Mini Computer आकार मे बड़े होते थे लेकिन एक Mainframe Computer, ENIAC (Electronic Numerical Integrator and calculator),  सन् 1946 मे दो वैज्ञानिको  J. Presper Eckert और John Mauchly के द्वारा बनाया गया था।

Super Computer- इस Computer मे समानान्तर श्रेणी मे एक से अधिक C.P.U. लगे होते  है, जिनमे 5 अरब गणनायें 1 Second मे की जा सकती है। पहला Super Computer CRAY XMP था। भारत का पहला  Super Computer “PARAM” था। जिसे पूणे की CDEC कम्पनी ने बनाया ।

Analog Computer-
ऐसे कम्प्यूटर जो Signals पर कार्य करते है। जैसे- Temperature, Pressure, Voltage, Speed etc.

Hybrid Computer-
ऐसे Computer जो Digital तथा Analog  दोनों की Property को Follow करता है। Hybrid Computer कहलाते है। चिकित्सा संबंधी क्षेत्र में इस तरह के Computer उपयोग मे लाये जाते हें

रविवार, 22 मार्च 2020

Software

Software
Computer के वे भाग जिन्हें हम न छू सकते है, न देख सकते है, न एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जा सकते है। इन्हें केवल महसूस कर सकते है, ऐसे सभी Elements Software कहलाते है।
दूसरे शब्दो में वे Program जो Computer के Hardware मे Active करने का कार्य करते है अथवा User के द्वारा Required Information को Computer करने का कार्य करते है, Software कहलाते है। Software को दो भागों में विभाजित किया गया है।
Ø System Software
Ø Application Software

System Software- 
वे Software जो Hardware के Performance को Control करते है, System और User के बीच Interface का कार्य करते है।
यह सामान्यतः तीन  प्रकार के होते है।
Ø Language Translator
Ø Operating System
Ø Utility Program

Language Translator- 
यह User Code को Machine Code में बदलने के लिये कार्य करता है। यह सामान्यतः तीन प्रकार के होते हैं।
Ø Compiler
Ø Interpreter        
Ø Assembler

Operating System-
यह एक Master Control Program होता है। जो सभी Input Device और Output Device को तथा Secondary Storage Devices को Control करने का काम करता है। इसके साथ - साथ Input Data, Output Data तथा Processed  Data को Control करने का काम भी करता है। यह निम्नलिखित Element  को Control करता है
Ø Input
Ø Output
Ø Memory Manegment
Ø File Management
Ø Interface Management

Utility Program- 
Computer का निर्माण करते समय निर्माणकर्ताओ द्वारा कुछ Software Install कर दिये जाते है तथा Computer Hardware के साथ आने वाले Software, Driver, Utility Program कहलाते है।

Application Software- 
वे Software जो User के द्वारा निर्देश लेते है।  लेने के बाद User के Required Information मे बदलते है, Application Software कहलाते है।
यह तीन प्रकार के होते है।

Normal Product-
इस तरह के Software आसानी से हर जगह प्राप्त नही होते, यह किसी Company के लिये उस Company के Requirement के आधार पर किसी Software Engineer के द्वारा बनवाये जाते हैं। ताकि Company की Working Capacity, Improve हो सकें।

Standard Product- 
इस तरह के Software आसानी से हर जगह प्राप्त हो जाते है। जैसे- MS Word Excel, Page Maker, Corel Draw, Photo Shop etc. 

Package-
Group of Software मिलकर किसी विशेष क्षेत्र मे Use किये जाते है। तब इस ग्रुप को Package कहा जाता है।
Ex- MS Office (MS Word, MS Excel, MS Power Point, MS Access), DTP (Desktop Publishing) “Page Maker, Coral Draw, Photo Shop”.

गुरुवार, 19 मार्च 2020

Components of Computer : Hardware

Fundamental
Computer :- 
एक Electronic Device है जो User के द्वारा Keyboard और Mouse से निर्देशों  को प्राप्त करता है, उन पर Process करता है और Information प्रदान करता है।

Work of Computer :-
कठिन तथा बार-बार आने वाली गणनाओं को जल्दी व सही-सही करता है। किसी भी प्रकार के Graphics को Design व Print करता है और उपयोगी आंकड़ों को Store करके रखता है, इसके अलावा Computer  का उपयोग कई सारे क्षेत्रो मे किया जाता है जैसे - Hospitality, Police Department, Education, Accountancy, Office Work, Job Work, DTP Work, Banking, Commerce, Communication, Entertainment, Gaming, Research Etc.

Components of Computer

कम्प्यूटर साामान्यतः दो भागों मे विभाजित हुआ है:-

Ø  Computer Hardware
Ø  Computer Software

Computer Hardware :- 
Computer के वे भाग जिन्हें हम देख, छू और महसूस कर सकते है, Computer Hardware कहलाते है। दूसरे शब्दों मे Computer के Electrical, Electronical तथा Mechanical  भागों को Computer Hardware कहते है। इन्हे सामान्यतः दो भागो मे बाॅटा जाता है।
Ø C.P.U. (Central Processing Unit)
Ø Peripherals
C.P.U.- 
CPU को कम्प्यूटर का दिमाग या हृदय कहा जाता है। क्योंकि लगभग Computer के सभी कार्य C.P.U. के द्वारा जैसे . Input, Output पर Control करना, Calculation करना और Data Store करना, किए जाते हैं।
इन सभी कार्यो को Control करने के लिये इसमें तीन इकाइयाॅं होती है।
Ø Control Unit (CU)
Ø Arithmetic and Logical Unit (ALU)
Ø Memory Unit (MU)

Control Unit :- 
यह सभी Input तथा Output Devices को Control करता है, Data को लाने और ले जाने का कार्य करता है तथा Secondary Storage Devices को भी Control करता है।

Arithmetic and Logical Unit :- 
सभी अंकगणितीय गणनायें जैसे- जोड़, घटाना, गुण़ा, भाग, वर्गमूल, प्रतिषत आदि) तथा तार्किक गणनायें जैसे- बड़ा, बराबर, छोटा, बराबर नहीं आदि गणनायें करता है।

Memory Unit:- 
Data को स्थायी अथवा अस्थायी रूप से Store करने के लिये Memory Unit का उपयोग करते है। Data Storage के आधार पर इसे  भी दो भागो मे बाॅटा गया है।
Ø Primary memory
Ø Secondary memory

Primary memory- 
C.P.U. के अंतर्गत Mother Board पर उपस्थित Memory Chips को Primary Memory कहा जाता है।, ये दो प्रकार की होती है।
Ø R.A.M. (Random Access Memory)
Ø R.O.M. (Read Only Memory)
R.A.M.:- 
यह एक Volatile Memory (वोलेटाइल मेमोरी) होती है, इसीलिये जब Computer मे Power आना बंद होता है, डाटा नष्ट हो जाता है। सिस्टम पर बनाई जाने वाली सभी फाइल Working Time में RAM पर स्टोर होती है। जब फाइल को सेव किया जाता है तो वह सभी फाइल सेकैण्डरी मेमोरी में स्थानान्तरित हो जाती है।

R.O.M. :-
यह एक Non Volitile Memory है, इसमे लिखा हुआ DATA  कई बार पढ़ा जा सकता है, लेकिन Change नहीं किया जाता है, इसमें उपस्थित Program, System   को START और SHUTDOWN  करने मे मदद करते है, इसे कई भागों में बाॅटा गया है।
                                          Ø PROM. (Program Read Only Memory)
Ø EPROM (Erasable Program Read Only Memory)
Ø EEPROM (Electrical Erasable Program Read Only Memory)
Ø Virtual Memory
Ø Cache Memory

Secondary Memory- 
ऐसी Memory जो  C.P.U. में होती है। लेकिन Mother Board पर नहीं, इन्हें सामान्यतः दो भागों मे बाॅटा गया है -
Ø HardDisk
Ø Floppy Disk 
Hard Disk- 
इसे Winchester Disk  भी कहते है। इसे कई सारे Track और  Sector मे बाॅटा गया है। एक Sector 512 MB का होता है। एक Hard Disk मे एक या एक से अधिक Magnetic Disk  होती है। जो एक Spindle (धुरी) पर Arrange होती है। इसमें डाटा को पढ़ने के लिये अथवा लिखने के लिये Read/Write Notch होता है। जिसके द्वारा Disk  में उपस्थित DATA को पढ़ा और लिखा जा सकता है। ये सारी Disk एक Box में बंद कर दी जाती है। ताकि  धूल और नमी इसके अंदर न जा सके एक Hard Disk की Capacity आधे ( ½ ) GB  से लेकर 3 TB तक की होती है / या हो सकती है।
डाटा की कुछ इकाईयां निम्न प्रकार है -
4 Nibble                         1 Bit
8 Bit                               1 Byte – 2 Nibble
1024 Byte                      1 K.B.(Kilobyte)
1024 K.B.                      1 M.B.(Megabyte)
1024 M.B.                     1 G.B. (Gigabyte)
                               1024 G.B.                      1 T.B. (Terabyte)
Floppy disk- 
जब DATA को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना पड़ता है तब Floppy का उपयोग किया जाता है। Data के Backup को रखने के लिये भी  Floppy Disk का प्रयोग करते है। इस की डाटा स्टोरेज की क्षमता 1.44 MB Maximum थी, चूँकि इसकी Capacity कम थी । इसलिये कुछ नये Storage Device का उपयोग किया गया। जिसमें से कुछ निम्न है। -

C.D.R.O.M.- (Compact Disk Read Only Memory)- 
यह Poly carbonate से बनी होती है। यह गोल Disk होती है।  जिसके ऊपर Aluminium की परत चढ़ी  होती है इस Disk में कई  सारे छोटे-छोटे छिद्र होते है। जिसमें Data Store होता है। इसके डाटा को पढ़ने के लिये Laser Beam का उपयोग किया जाता है। इसकी Capacity 700 MB Maximum होती है।

D.V.D. (Digital Versatile Disk) 
यह CD-ROM की तरह एक Disk होती है, जिसे ftls Data Storage  के लिये उपयोग मे लाया जाता है, इसके अधिकतम चार Layers में Data को Store किया जाता है। इसे Maximum Capacity 4×4.7 GB होती है। इस पर डाटा को करने हेतु  DVD ROM Writer प्रयोग में लाया जाता है।

B.D.(Blue Ray Disk)- 
यह D.V.D. की तरह होती है। तथा उसमें High Definition Data Storeकिया जाता है। इसमे 25GB  से लेकर 100-128 GB Data Store किया जाता है। इसे Write करने के लिये BD Writer की जरुरत पड़ती है।

Pen Drive- 
यह Pen के Cap के आकार की USB Drive  होती है, जिसमें Data को कई बार Write या Read किया जाता है। यह Device, Plug and Play होती है। इसकी Capacity 128 MB से लेकर 64 GB तक होती है।

Memory Card- 
इनका उपयोग Mobile, Camera में Digital Wallpaper आदि को Store करने के लिये किया जाता है। Micro SD, Mini SD आदि प्रकार के Memory कार्ड बाजार में उपलब्ध है। जिनकी 32 MB  से लेकर 256 GB तक हो सकती है।

Magnetic Tape- 
यह एक Sequential Data Storage Device है, जिसमें DATA  जिस  क्रम में लिखा जाता है, उसी क्रम में वापस प्राप्त किया जा सकता है। इसकी उपयोगिता ज्यादातर Banking, Industries में होती थी।

Peripherals- 
C.P.U. के अलावा Computer में उपयोग की जाने वाली सभी Devices, Peripherals के अन्तर्गत आती है।  इन्हें तीन भागो मे बाॅटा गया है-
Ø Input Device
Ø Output Device
Ø Secondary Storage device
Input Device-
वे Device जिनके द्वारा Computer को दिशा निर्देश दिये जाते है, अथवा Raw Data (जैसे- Number, Figure, Facts, Data  आदि) System में भेजे जाते हैं। Input Device कहलाती है। कुछ Input Device निम्न प्रकार है:-
Ø Mouse        
Ø Key-Board
Ø M.I.C.R. (Magnetic Ink Character Recognizer)   
Ø O.C.R. (Optical Character Reader)
Ø O.M.R. (Optical Marks Reader)
Ø B.C.R. (Bar Code Reader)
Ø JOY STICK
Ø TOUCH SCREEN
Ø SCANNER
Ø LIGHT PEN

Mouse-
यह एक Pointing Device होती है, जिसके द्वारा Screen पर उपस्थित  Pointer के Movement को Control  किया जाता है। तथा Commands, Figures, Facts आदि को System में भेजा जाता है। यह विभिन्न  प्रकार के हो सकते हैं।
Ø Machenical Mouse
Ø Option mouse
Ø Wireless Mouse
Keyboard-
यह Standerd Typing Machine की तरह होता है, जिसमें कुछ अतिरिक्त Key होती है, जिसके द्वारा हम विभिन्न कार्यो को संपादित कर सकते है। ये भी कई प्रकार के होते है-
Ø Standard Keyboard
Ø Multimedia Keyboard
Ø Wireless Keyboard
Ø Virtual Keyboard
O.M.R.

O.C.R. -
यह O.M.R. की तरह होता है। लेकिन इसके द्वारा भी Competition Examsकी काॅपियां Check होती है। इसके द्वारा भी विभिन्न प्रकार के Characters को पढ़ा जाता है।

M.I.C.R. -
यह Magnetic Ink से लिखे हुये अक्षरो को पढ़ने के काम आती हैं। इसमें प्रयोग की जाने वाली Ink  एक निश्चित अनुपात मे Magnetic Material से मिलकर बनी होती हैं। इसके द्वारा Bank  के Cheque, Check किये जाते है।

B.C.R. -
यह विभिन्न Products पर उपस्थित Bar Code को पढ़ने में प्रयोग की जाती है, इस पर  Products की सारी जानकारी होती है।

Scanner-
किसी कागज, फोटो अथवा Documentation (Printed Material) को Computer में भेेजने के लिये  उपयोग मे लाया जाता है।

Light Pen- 
यह एक Pointing Device है।  जिसके द्वारा एक  Pad पर बनाई हुयी आकृति को Computer  की आउटपुट डिवाइस पर प्राप्त किया जा सकता हैं। इसके द्वारा किसी भी प्रकार की Image, Cartoon, Text, Graphics को Design किया जा सकता है।

Joy Stick-
इसके अंतर्गत विभिन्न  Gaming Device आती है, जिनके द्वारा Game खेले जाते है।

Touch Screen-
इसके द्वारा Screen को Touch करते हुयें निर्देशों को Computer में भेजा जाता हैं।  Exam.- ATM Machine, Touch Screen mobile. Etc. 

Output Device- 
इसके अंतर्गत Input Device के द्वारा दिये गये निर्देशों को Process होने के पश्चात जिन Device पर देखा जाता है अथवा प्राप्त किया जाता है, Output Device कहलाती है।

Monitor-
जब Keyboard या Mouse से System को निर्देश देते हैं, तो तब ये हमें Monitor पर दिखाई देता है। Monitor एक T.V.  की तरह होता है, जिस पर 24 लाइन और 80 अक्षर प्रतिलाइन Type किया जाता है। यह सामान्यतः दो प्रकार के होते है।-
Ø B/W Monitor
Ø  Color Monitor- ;g Hkh nks çdkj dk gksrk gSA
o   C.R.T.(Cathod Ray Tube)
o   L.C.D.(Liquid Crystal Display)

Printer-
Monitor पर दिखाई देने वाली Information को कागज पर प्राप्त करने के लिये Printer का Use किया जाता है। ये दो प्रकार के होते है
Ø Impact Printer
Ø Non-Impact Printer

Impact Printer-.
इस तरह के Printer मे एक Head रिबन पर चोट करता है और अक्षर Print होता है। कुछ Impact Printer निम्न प्रकार है।-
Ø D.O.T. Matrix Printer
Ø Wheel Printer
Ø Line Printer


Non Impact Printer-.
इस तरह के Printerमे Head नही होते है।, इनमें Printing, Toner के द्वारा Spray के माध्यम से अथवा Cartridge Movement से होती है। ये दो प्रकार के होते है।
Ø InkJet Printer
Ø Lazer/Laser Printer
Plotter-
यह Printer की तरह कार्य करता है, लेकिन इसमे A4 से बड़ी आकृति/बड़ी Design बनाई जा सकती है। इसका उपयोग Engineering Designs को Print करने के लिये होता है।

Flex Printer-
यह Printer आकार में बहुत बड़ा होता है। जिस के द्वारा Flex Banner, One Way Vision आदि साढ़े 10 फुट चैड़ाई व लम्बाई  जितनी चाहे प्रिन्ट कर सकते है।

Secondary Storage Devices :-
Same as Secondary Memory.

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